कांजीवरम सिल्क साड़ी की बुनाई में सोने-चांदी के तारों का इस्तेमाल होता है, और इसे दक्षिण भारत से खास पहचान मिली है।

कांजीवरम साड़ी की शुरुआत तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर से हुई थी। इसके इतिहास के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन एक मान्यता के अनुसार, यहां भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था, जिसके लिए कई साड़ियां तैयार की गई थीं। कहा जाता है कि कांचीपुरम में बुनाई की यह परंपरा ऋषि मार्कण्डेय के वंशजों ने शुरू की थी। इसे लोकल भाषा में कांचीपुरम साड़ी भी कहा जाता है।

Kanjivaram silk saree

कांजीवरम साड़ी की शुरुआत तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर से हुई थी। इसके इतिहास के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन एक मान्यता के अनुसार, यहां भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था, जिसके लिए कई साड़ियां तैयार की गई थीं। कहा जाता है कि कांचीपुरम में बुनाई की यह परंपरा ऋषि मार्कण्डेय के वंशजों ने शुरू की थी। इसे लोकल भाषा में कांचीपुरम साड़ी भी कहा जाता है।

सोने-चांदी के तारों का इस्तेमाल:

कांजीवरम साड़ियां अपनी विशेषताओं के लिए जानी जाती हैं। इनमें कढ़ाई के लिए इस्तेमाल होने वाले धागे में कम से कम 40 प्रतिशत चांदी और 0.5 प्रतिशत सोना होता है। इन साड़ियों का वजन एक किलो तक हो सकता है। खास बात यह है कि इन्हें Geographical Indication Tag मिला हुआ है, जो बताता है कि शुद्ध कांजीवरम साड़ी सिर्फ कांचीपुरम में ही बनाई जा सकती है।

भारतीय महिलाओं की पारंपरिक पोशाक:

साड़ी का मतलब कपड़े का लंबा टुकड़ा होता है, और पिछले 3 हजार साल में यह ट्रेडिशनल पीस जबरदस्त तरक्की कर चुका है। पूरे भारत में करीब 30 तरह की बेमिसाल साड़ियां मिलती हैं, लेकिन कांजीवरम सिल्क साड़ी सबसे ज्यादा पसंद की जाती है।

400 साल पुरानी कला:

कांजीवरम सिल्क साड़ियों को बेहद शुभ माना जाता है। इस 400 साल से भी ज्यादा पुरानी कला को जिंदा रखने में नेशनल अवार्ड विनर बी. कृष्णमूर्ति का विशेष योगदान है। उन्होंने महज 15 साल की उम्र से बुनाई शुरू की थी और आज वे एक मास्टर वीवर हैं। 2010 और 2018 में उन्होंने संत कबीर सम्मान जीता है। कृष्णमूर्ति बचपन से ही मंदिरों से जुड़े रहे और मंदिरों की दीवारों पर बनी नक्काशी से प्रेरित होकर उन्होंने पेंटिंग की शुरुआत की।

कांजीवरम साड़ी की तैयार प्रक्रिया:

कांजीवरम साड़ी की बुनाई में बारीकियों और लेबर की वजह से एक लूप पर तीन लोग काम करते हैं। यही कारण है कि इन साड़ियों की कीमत लाखों में हो सकती है। किसी साड़ी पर पेंटिंग होती है तो किसी पर सोने-चांदी का काम। ये साड़ियां वास्तव में एक कला का काम होती हैं और इन्हें बनाने वाले बुनकर किसी कलाकार से कम नहीं होते। 

फैब्रिक में सोने-चांदी का इस्तेमाल:

कांजीवरम साड़ी का फैब्रिक काफी मजबूत होता है क्योंकि इसमें रेशम के धागों के साथ सोने और चांदी के तार मिलाए जाते हैं। इस कारण इनका वजन भी भारी हो जाता है। अगर आपको बाजार में 2 किलो की कांजीवरम साड़ी दिखाई दे, तो इसमें चौंकने की कोई बात नहीं है।